दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या
आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से
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कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
एक वाक़िआ
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों
हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला
मुफ़ाहमत
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
इक और भी है मुंसिफ़
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी