Friendship Poetry of Imdad Ali Bahr
नाम | इमदाद अली बहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Imdad Ali Bahr |
मौत की तिथि | 1878 |
जन्म स्थान | Lucknow |
ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा
ये दिल है तो आफ़त में पड़ते रहेंगे
वस्ल में ज़िक्र ग़ैर का न करो
वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया
वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे
वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे
तेरी हर इक बात है नश्तर न छेड़
तारे गिनते रात कटती ही नहीं आती है नींद
सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके
सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके
शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का
सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का
साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट
सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत
सब हसीनों में वो प्यारा ख़ूब है
फल आते हैं फूल टूटते हैं
मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा
मर गए पर भी न हो बोझ किसी पर अपना
मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता
मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का
महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया
ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं
ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है
कभी देखें जो रू-ए-यार दरख़्त
जिस को चाहो तुम उस को भर दो
जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा
जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है
जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ
इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से