Islamic Poetry of Imdad Ali Bahr

Islamic Poetry of Imdad Ali Bahr
नामइमदाद अली बहर
अंग्रेज़ी नामImdad Ali Bahr
मौत की तिथि1878
जन्म स्थानLucknow

ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा

वो रश्क-ए-मेहर-ओ-क़मर घात पर नहीं आता

वक़्त-ए-आख़िर हमें दीदार दिखाया न गया

शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का

सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत

रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप

नहीं होने का ये ख़ून-ए-जिगर बंद

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

किया सलाम जो साक़ी से हम ने जाम लिया

ख़ुदा-परस्त हुए न हम बुत-परस्त हुए

ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

ग़ज़ब है देखने में अच्छी सूरत आ ही जाती है

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

बग़ैर यार गवारा नहीं कबाब शराब

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला

आरास्तगी बड़ी जिला है

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