भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए
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कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये किस ख़ता पे रूठ गई चश्म-ए-इल्तिफ़ात
दिल की बर्बादियों पे नाज़ाँ हूँ
तिरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
बदलती जा रही है दिल की दुनिया
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर हैं 'शकील'
आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
सिदक़-ओ-सफ़ा-ए-क़ल्ब से महरूम है हयात
शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए