शारिक़ कैफ़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शारिक़ कैफ़ी (page 4)
नाम | शारिक़ कैफ़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shariq Kaifi |
जन्म की तारीख | 1961 |
जन्म स्थान | Bareilly |
सामने तेरे हूँ घबराया हुआ
सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था
सब आसान हुआ जाता है
रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
पहली बार वो ख़त लिक्खा था
निगाह नीची हुई है मेरी
नहीं मैं हौसला तो कर रहा था
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
लोग सह लेते थे हँस कर कभी बे-ज़ारी भी
कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
कोई कुछ भी कहता रहे सब ख़ामोशी से सुन लेता है
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं
कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले
कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ
जो कहता है कि दरिया देख आया
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं
होने से मिरे फ़र्क़ ही पड़ता था भला क्या
हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
गुज़र रहा है वो लम्हा तो याद आया है
एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए
इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने
दुनिया शायद भूल रही है
दिलों पर नक़्श होना चाहता हूँ
भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं
बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे