शारिक़ कैफ़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शारिक़ कैफ़ी (page 2)

शारिक़ कैफ़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शारिक़ कैफ़ी (page 2)
नामशारिक़ कैफ़ी
अंग्रेज़ी नामShariq Kaifi
जन्म की तारीख1961
जन्म स्थानBareilly

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

जैसे ये मेज़ मिट्टी का हाथी ये फूल

हो सबब कुछ भी मिरे आँख बचाने का मगर

हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम

गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे

फ़ासला रख के भी क्या हासिल हुआ

फ़ैसले औरों के करता हूँ

एक दिन हम अचानक बड़े हो गए

बीनाई भी क्या क्या धोके देती है

भीड़ में जब तक रहते हैं जोशीले हैं

बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'

बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो

बहुत गदला था पानी उस नदी का

बहुत भटके तो हम समझे हैं ये बात

अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें

अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ

अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत

अब मुझे कौन जीत सकता है

आओ गले मिल कर ये देखें

यक़ीन के ख़िलाफ़

यही रस्सी मिली थी

वो सारे लफ़्ज़ झूटे थे

वो बकरा फिर अकेला पड़ गया है

तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है

रोता हुआ बकरा

नज़र भर देख लूँ बस

मुजरिम होने की मजबूरी

मुझे हँसना पड़ा आख़िर

मोहब्बत की इंतिहा पर

मश्क़

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