कुफ़्र-ओ-ईमाँ दो नदी हैं इश्क़ कीं
आख़िरश दोनो का संगम होवेगा
Jaun Eliya
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मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
आया पिया शराब का प्याला पिया हुआ
नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
न मिले जब तलक विसाल उस का
खुल गए उस की ज़ुल्फ़ के देखे
कान में है तेरे मोती आब-दार
मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा
जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का
हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद