Ghazals of Sufi Tabassum (page 2)
नाम | सूफ़ी तबस्सुम |
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अंग्रेज़ी नाम | Sufi Tabassum |
जन्म की तारीख | 1899 |
मौत की तिथि | 1978 |
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
ख़ामोशी कलाम हो गई है
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं
जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
जान दे कर वफ़ा में नाम किया
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद
हुस्न को जो मंज़ूर हुआ
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं
हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
हर एक नक़्श तिरे पाँव का निशाँ सा है
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा
दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए
दास्तान-ए-ग़म हम ने कह भी दी तो क्या होगा
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
ऐसे भी थे कुछ हालात
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था