Ghazals of Sufi Tabassum
नाम | सूफ़ी तबस्सुम |
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अंग्रेज़ी नाम | Sufi Tabassum |
जन्म की तारीख | 1899 |
मौत की तिथि | 1978 |
ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया
वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
सायों से लिपट रहे थे साए
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
रस्म-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें
निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं
नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा
मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है
मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?
क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है