अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
मगर निकाल न तू अपनी अंजुमन से मुझे
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(465) Peoples Rate This
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई