ख़ौफ़ ऐसा है कि दुनिया के सताए हुए लोग
कभी मिम्बर कभी मेहराब से डर जाते हैं
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
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अहल-ए-जुनूँ थे फ़स्ल-ए-बहाराँ के सर गए
गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए
जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया
बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
तमाम उम्र की बे-ताबियों का हासिल था
धुआँ सा फैल गया दिल में शाम ढलते ही
जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है
अजीब तुर्फ़ा-तमाशा है मेरे अहद के लोग
हर तरफ़ शोर-ए-फ़ुग़ाँ है कोई सुनता ही नहीं
मैं जो चुप था हमा-तन-गोश थी बस्ती सारी