इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
वीरानी होती है तो हैरानी होती है
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इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायद
परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
ये नुक्ता इक क़िस्सा-गो ने मुझ को समझाया
इक वडेरा कुछ मवेशी ले के बैठा है यहाँ
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
ये मोहब्बत के महल ता'मीर करना छोड़ दे
दालान में सब्ज़ा है न तालाब में पानी
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता