तिरी मसनद पे कोई और नहीं आ सकता
ये मिरा दिल है कोई ख़ाली असामी तो नहीं
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ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ कर
उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं
आज ही फ़ुर्सत से कल का मसअला छेड़ूँगा मैं
तू रोज़ जिस के तजस्सुस में आ रहा है यहाँ
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है