ऐन मुमकिन है कि बीनाई मुझे धोका दे
ये जो शबनम है शरारा भी तो हो सकता है
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हर एक रंग धनक की मिसाल ऐसा था
कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर
सुकूत तोड़ने का एहतिमाम करना चाहिए
हवा के हाथ पे छाले हैं आज तक मौजूद
दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया
जिस समय तेरा असर था मुझ में
जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया
दस्त-बस्तों को इशारा भी तो हो सकता है
दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है
फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं
ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे
वो सर उठाए यहाँ से पलट गया 'अहमद'