सात क़ुल्ज़ुम हैं मिरे सीने में
एक क़तरे से उभारा था मुझे
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बाहर इंसानों से नफ़रत है लेकिन
फूलों में एक रंग है आँखों के नीर का
चाँद में दरवेश है जुगनू में जोगी
जानकारी खेल लफ़्ज़ों का ज़बाँ का शोर है
जिस्म भूका है तो है रूह भी प्यासी मेरी
मिरी आँखों में आ दिल में उतर पैवंद-ए-जाँ हो जा
ये वक़्त रौशनी का मुख़्तसर है
बग़ैर-ए-जिस्म भी है जिस्म का एहसास ज़िंदा
इमरोज़ की कश्ती को डुबोने के लिए हूँ
मैं ने भी बच्चों को अपनी निस्बत से आज़ाद किया
लम्हा लम्हा रोज़ ओ शब को देर होती जाएगी
कौन क़तरे में उठाता है तलातुम