किया है आने का वादा तो उस ने
मेरे परवरदिगार आए न आए
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काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
उस के अहद-ए-शबाब में जीना
उस मह-जबीं से आज मुलाक़ात हो गई
आँसू
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें
रिंदों को बहिश्त की ख़बर दे साक़ी
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
नज़्र-ए-वतन
थक गए हम करते करते इंतिज़ार
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
ओ देस से आने वाले बता