ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
ख़ुदा के सामने गोया न था मैं
न देखा आँख उठा कर जल्वा-ए-दोस्त
क़यामत में तमाशा बन गया मैं
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मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है
दम-ए-आरिफ़ नसीम-ए-सुब्ह-दम है
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
नया शिवाला
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
एक पहाड़ और गिलहरी