इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए
अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
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भूले से हो गई है अगरचे ये उस से बात
पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
जाने किस रंग से रूठेगी तबीअत उस की
मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
एजाज़-ए-इज्ज़
मोटे शीशों की नाक पे ऐनक
सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं ये कमरे का दिया
लुत्फ़-ए-नज़्ज़रा है ए दोस्त इसी के दम से
मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'
जौहर ओ जवाहिर
उन के बग़ैर फ़स्ल-ए-बहाराँ भी बर्गरीज़