मिरी बर्बादियों का हम-नशीनो
तुम्हें क्या ख़ुद मुझे भी ग़म नहीं है
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दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
शिकवा-ए-मुख़्तसर
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
मज़दूरों का गीत
न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है
पहला जश्न-ए-आज़ादी
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
नुमाइश में
ज़िंदगी साज़ दे रही है मुझे
हुस्न को शर्मसार करना ही