वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को
और ढूँडेगा कहीं मेरे अलावा मुझ को
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मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
वफ़ा के नाम पर पैरा किए कच्चे घड़े ले कर
धूप मेरी सारी रंगीनी उड़ा ले जाएगी
ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी
लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से
मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा
कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं
बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर
मेरे अंदर कोई तकता रहा रस्ता उस का
निकल पड़े न कहीं अपनी आड़ से कोई
निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी