काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
कुछ संग बच रहा था सो उस बुत का दिल बना
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आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं
मत तंग हो करे जो फ़लक तुझ को तंग-दस्त
थे हम इस्तादा तिरे दर पे वले बैठ गए
इश्क़ ने मंसब लिखे जिस दिन मिरी तक़दीर में
क्या तुझ को लिखूँ ख़त हरकत हाथ से गुम है
इश्क़ में बू है किबरियाई की
उल्फ़त में तिरी ऐ बुत-ए-बे-मेहर-ओ-मोहब्बत
बस पा-ए-जुनूँ सैर-ए-बयाबाँ तो बहुत की
ऐ इश्क़ तू हर-चंद मिरा दुश्मन-ए-जाँ हो
जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ