बस पा-ए-जुनूँ सैर-ए-बयाबाँ तो बहुत की
अब ख़ाना-ए-ज़ंजीर में टुक बैठ के दम ले
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ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
सिपाह-ए-इशरत पे फ़ौज-ए-ग़म ने जो मिल के मरकब बहम उठाए
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद
जो चश्म-ओ-दिल से चढ़ा दूँ नाले ब-आब-ए-अव्वल दोवम-ब-आतिश
इश्क़ में बू है किबरियाई की
चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा
देख आईना जो कहता है कि अल्लाह-रे मैं
जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे
देखा तो एक शो'ले से ऐ शैख़-ओ-बरहमन
क़ज़ा ने हाल-ए-गुल जब सफ़्हा-ए-तक़दीर पर लिक्खा
ख़्वाहिश-ए-सूद थी सौदे में मोहब्बत के वले
सैलाब से आँखों के रहते हैं ख़राबे में