फिरता है मेरे दिल में कोई हर्फ़-ए-मुद्दआ
क़ासिद से कह दो और न जाए ज़रा सी देर
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हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
आती है बात बात मुझे बार बार याद
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
दिल ले के उन की बज़्म में जाया न जाएगा
शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम