हैरत है सब तलाश पे उस की रहे मुसिर
पाया गया सुराग़ न जिस बे-सुराग़ का
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सूरत-ए-सहर जाऊँ और दर-ब-दर जाऊँ
कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा
इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा
ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
क़िस्मत की ख़राबी है कि जाता हूँ ग़लत सम्त
निशान-ए-ज़िंदगी
मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ
बुझी नहीं मिरे आतिश-कदे की आग अभी
जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है
चाहा था मफ़र दिल ने मगर ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर
होता है फिर वो और किसी याद के सुपुर्द