फ़ारिग़ बुख़ारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़ारिग़ बुख़ारी (page 2)
नाम | फ़ारिग़ बुख़ारी |
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अंग्रेज़ी नाम | Farigh Bukhari |
जन्म की तारीख | 1917 |
मौत की तिथि | 1997 |
मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक
मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे
कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है
कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा
जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का
जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ
इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए
इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के
हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव
हवास लूट लिए शोरिश-ए-तमन्ना ने
हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं
हमें सलीक़ा न आया जहाँ में जीने का
दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में
दिल के घाव जब आँखों में आते हैं
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
देख कर उस हसीन पैकर को
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ