Sad Poetry of Figar Unnavi

Sad Poetry of Figar Unnavi
नामफ़िगार उन्नावी
अंग्रेज़ी नामFigar Unnavi

तिरे ग़म के सामने कुछ ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं है

हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार

ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने

फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो

इक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त

दिल चोट सहे और उफ़ न करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन

ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

लब पे झूटे तराने होते हैं

किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं

हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

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