Ghazals of Figar Unnavi

Ghazals of Figar Unnavi
नामफ़िगार उन्नावी
अंग्रेज़ी नामFigar Unnavi

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

लब पे झूटे तराने होते हैं

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं

हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

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