याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है
का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम
रंग-ए-सोहबत बदलते जाते हैं
इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा
गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है
रातों को बुत बग़ल में हैं क़ुरआँ तमाम दिन
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
आफ़्ताब अब नहीं निकलने का
ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं
हम 'मेहर' मोहब्बत से बहुत तंग हैं अब तो
वहदहू-ला-शरीक की है क़सम
जवाँ रखती है मय देखे अजब तासीर पानी में