ख्वाब Poetry (page 114)
वक़्त लफ़्ज़ों से बनाई हुई चादर जैसा
अब्बास ताबिश
तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता
अब्बास ताबिश
न ख़्वाब ही से जगाया न इंतिज़ार किया
अब्बास ताबिश
उसे मैं ने नहीं देखा
अब्बास ताबिश
ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं
अब्बास ताबिश
ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं
अब्बास ताबिश
ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं
अब्बास ताबिश
ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है
अब्बास ताबिश
वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो
अब्बास ताबिश
उस का ख़याल ख़्वाब के दर से निकल गया
अब्बास ताबिश
तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता
अब्बास ताबिश
शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
अब्बास ताबिश
परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया
अब्बास ताबिश
पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है
अब्बास ताबिश
नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है
अब्बास ताबिश
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
अब्बास ताबिश
जहान-ए-मर्ग-ए-सदा में इक और सिलसिला ख़त्म हो गया है
अब्बास ताबिश
हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है
अब्बास ताबिश
दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें
अब्बास ताबिश
चश्म-ए-नम-दीदा सही ख़ित्ता-ए-शादाब मिरा
अब्बास ताबिश
चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया
अब्बास ताबिश
चाँद का पत्थर बाँध के तन से उतरी मंज़र-ए-ख़्वाब में चुप
अब्बास ताबिश
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
अब्बास रिज़वी
सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं
अब्बास रिज़वी
मैं उस से दूर रहा उस की दस्तरस में रहा
अब्बास रिज़वी
जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है
अब्बास रिज़वी
जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया
अब्बास रिज़वी
धुआँ सा फैल गया दिल में शाम ढलते ही
अब्बास रिज़वी
जहाँ सारे हवा बनने की कोशिश कर रहे थे
अब्बास क़मर
ख़्वाब-गह में सियाह ख़ुशबू था
अब्बास कैफ़ी