Hope Poetry (page 5)
मुसलसल जागने के बाद ख़्वाहिश रूठ जाती है
इक़बाल साजिद
एक भी ख़्वाहिश के हाथों में न मेहंदी लग सकी
इक़बाल साजिद
वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था
इक़बाल साजिद
उस आइने में देखना हैरत भी आएगी
इक़बाल साजिद
सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को
इक़बाल साजिद
सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई
इक़बाल साजिद
संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा
इक़बाल साजिद
रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला
इक़बाल साजिद
प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ
इक़बाल साजिद
फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो
इक़बाल साजिद
पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का
इक़बाल साजिद
ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया
इक़बाल साजिद
ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा
इक़बाल साजिद
इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना
इक़बाल साजिद
हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे
इक़बाल साजिद
गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की
इक़बाल साजिद
इक रिदा-ए-सब्ज़ की ख़्वाहिश बहुत महँगी पड़ी
इक़बाल साजिद
अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की
इक़बाल साजिद
ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई
इक़बाल साजिद
वो निगाहों को जब बदलते हैं
इक़बाल सफ़ी पूरी
गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने
इक़बाल सफ़ी पूरी
दामन-ए-दिल है तार तार अपना
इक़बाल सफ़ी पूरी
जिस का चेहरा गुलाब जैसा है
इक़बाल पयाम
मिरी ख़्वाहिश है दुनिया को भी अपने साथ ले आऊँ
इक़बाल नवेद
ख़्वाहिशों के पेड़ से गिरते हुए पत्ते न चुन
इक़बाल नवेद
ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ
इक़बाल नवेद
रात भर कोई न दरवाज़ा खुला
इक़बाल नवेद
दोस्तों के हू-ब-हू पैकर का अंदाज़ा लगा
इक़बाल नवेद
अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती
इक़बाल नवेद