Hope Poetry (page 6)
साल नौ के लिए एक नज़्म
इक़बाल नाज़िर
नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे
इक़बाल मिनहास
न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है
इक़बाल मिनहास
जब शाख़-ए-तमन्ना पे कोई फूल खिला है
इक़बाल मिनहास
शहपारा-ए-अदब हो अगर वारदात-ए-दिल
इक़बाल माहिर
नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़
इक़बाल माहिर
हस्ब-ए-मामूल आए हैं शाख़ों में फूल अब के बरस
इक़बाल माहिर
बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए
इक़बाल माहिर
ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
आँखों के चराग़ वारते हैं
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
अब बाँझ ज़मीनों से उम्मीद भी क्या रखना
इक़बाल कौसर
सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं
इक़बाल कौसर
जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ
इक़बाल कौसर
'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें
इक़बाल कौसर
ख़िज़ाँ का दौर भी आता है एक दिन 'कैफ़ी'
इक़बाल कैफ़ी
सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है
इक़बाल कैफ़ी
साइल के लबों पर है दुआ और तरह की
इक़बाल कैफ़ी
लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं
इक़बाल कैफ़ी
टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
पाता हूँ इज़्तिराब रुख़-ए-पुर-हिजाब में
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
नज़र जिन की उलझ जाती है उन की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
मिरी नज़र से जो नज़रें बचाए बैठे हैं
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
मर्ग-ए-गुल से पेशतर
इक़बाल हैदर
खोए गए तो आइने को मो'तबर किया
इक़बाल हैदर
ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए
इक़बाल अज़ीम
वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा
इक़बाल अज़ीम
मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ
इक़बाल अज़ीम
माना कि ज़िंदगी से हमें कुछ मिला भी है
इक़बाल अज़ीम