Hope Poetry (page 7)
कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं
इक़बाल अज़ीम
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
इक़बाल अज़ीम
बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तज्दीद की गई
इक़बाल अज़ीम
अपने मरकज़ से अगर दूर निकल जाओगे
इक़बाल अज़ीम
अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे
इक़बाल अज़ीम
अब इसे क्या करे कोई आँखों में रौशनी नहीं
इक़बाल अज़ीम
आँखों से नूर दिल से ख़ुशी छीन ली गई
इक़बाल अज़ीम
कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो
इक़बाल अासिफ़
बर्ग ठहरे न जब समर ठहरे
इक़बाल अासिफ़
ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है
इक़बाल अशहर कुरेशी
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
इक़बाल अशहर
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
इक़बाल अशहर
तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था
इक़बाल अशहर
सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला
इक़बाल अशहर
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
इक़बाल अशहर
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
इक़बाल अशहर
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
इक़बाल अशहर
बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
इक़बाल अशहर
छोटी ही सही बात की तासीर तो देखो
इक़बाल अंजुम
मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही
इक़बाल आबिदी
बिजलियों के रक़ीब होते हैं
इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी
हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे
इंतिख़ाब सय्यद
अंदेशों का ज़हर पिया है
इंतिख़ाब सय्यद
ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से
इंशा अल्लाह ख़ान
यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में
इंशा अल्लाह ख़ान
वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में
इंशा अल्लाह ख़ान
टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है
इंशा अल्लाह ख़ान
तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत
इंशा अल्लाह ख़ान
तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान
सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठों
इंशा अल्लाह ख़ान