Hope Poetry (page 9)
हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें
इन्दिरा वर्मा
दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है
इन्दिरा वर्मा
आज फिर चाँद उस ने माँगा है
इन्दिरा वर्मा
और तो कोई था नहीं शायद
इंद्र सराज़ी
रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में
इंद्र सराज़ी
दिन में जो साथ सब के हँसता था
इंद्र सराज़ी
इंकिशाफ़
इनाम-उल-हक़ जावेद
लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक
इनाम-उल-हक़ जावेद
जो तेरी आरज़ू मुझ को न होती
इनाम नदीम
एक लम्हा लौट कर आया नहीं
इनाम नदीम
ये मंज़र बे-दर-ओ-दीवार होता
इनाम नदीम
पड़ता था इस ख़याल का साया यहीं कहीं
इनाम नदीम
नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं
इनाम नदीम
कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने
इनाम नदीम
आँख ने धोका खाया था या साया था
इनाम नदीम
वुफ़ूर-ए-हुस्न की लज़्ज़त से टूट जाते हैं
इनाम कबीर
वो आते-जाते इधर देखता ज़रा सा है
इनाम कबीर
सोचता हूँ सदा मैं ज़मीं पर अगर कुछ कभी बाँटता
इनआम आज़मी
कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं
इनआम आज़मी
कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं
इनआम आज़मी
कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे
इनआम आज़मी
दर-ए-उमीद मुक़फ़्फ़ल नहीं हुआ अब तक
इनआम आज़मी
ये क़िस्सा-ए-मुख़्तसर नहीं है
इम्तियाज़-उल-हक़ इम्तियाज़
वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था
इम्तियाज़ साग़र
हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना
इम्तियाज़ साग़र
अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा
इम्तियाज़ अहमद राही
यूँही अक्सर मुझे समझा बुझा कर लौट जाती है
इम्तियाज़ अहमद
वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया
इम्तियाज़ अहमद
उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए
इमरान-उल-हक़ चौहान
पयाम ले के हवा दूर तक नहीं जाती
इमरान-उल-हक़ चौहान