Love Poetry (page 215)
ज़िंदगी नाम है मोहब्बत का
अज़ीज़ हैदराबादी
ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा
अज़ीज़ हैदराबादी
वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है
अज़ीज़ हैदराबादी
उठाईं हिज्र की शब दिल ने आफ़तें क्या क्या
अज़ीज़ हैदराबादी
शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की
अज़ीज़ हैदराबादी
शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की
अज़ीज़ हैदराबादी
नाज़नीनान-ए-जहाँ शोबदा-गर पक्के हैं
अज़ीज़ हैदराबादी
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
अज़ीज़ हैदराबादी
न बदलना था न बदला दिल-ए-शैदा अपना
अज़ीज़ हैदराबादी
मोहब्बत का मुझे दावा ही क्या है
अज़ीज़ हैदराबादी
क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं
अज़ीज़ हैदराबादी
कोई रुस्वा कोई सौदाई है
अज़ीज़ हैदराबादी
दर्द जाता नज़र नहीं आता
अज़ीज़ हैदराबादी
बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
अज़ीज़ हैदराबादी
माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम
अज़ीज़ हामिद मदनी
ख़ूँ हुआ दिल कि पशीमान-ए-सदाक़त है वफ़ा
अज़ीज़ हामिद मदनी
हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात
अज़ीज़ हामिद मदनी
गहरे सुर्ख़ गुलाब का अंधा बुलबुल साँप को क्या देखेगा
अज़ीज़ हामिद मदनी
अभी तो कुछ लोग ज़िंदगी में हज़ार सायों का इक शजर हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
अज़ीज़ हामिद मदनी
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई
अज़ीज़ हामिद मदनी
सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या
अज़ीज़ हामिद मदनी
नावक-ए-ताज़ा दिल पर मारा जंग पुरानी जारी की
अज़ीज़ हामिद मदनी