देशभक्तिपूर्ण Poetry (page 6)
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
फ़रहत एहसास
तेरा भला हो तू जो समझता है मुझ को ग़ैर
फ़रहत एहसास
तमाम शहर की ख़ातिर चमन से आते हैं
फ़रहत एहसास
ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने
फ़रहत एहसास
कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए
फ़रहत एहसास
दिल ने इमदाद कभी हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी
फ़रहत एहसास
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे
फ़राग़ रोहवी
नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
फ़ानी बदायुनी
ज़ब्त अपना शिआर था न रहा
फ़ानी बदायुनी
तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्र-ए-वतन हुई
फ़ना निज़ामी कानपुरी
वो ख़ानुमाँ-ख़राब न क्यूँ दर-ब-दर फिरे
फ़ना निज़ामी कानपुरी
न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी
फ़ना बुलंदशहरी
लम्हों का भँवर चीर के इंसान बना हूँ
फख्र ज़मान
दुआओं के दिए जब जल रहे थे
फ़ैज़ान आरिफ़
लगा कि जैसे किसी काँपते हिरन को छुआ
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िंदाँ की एक शाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम्हारे हुस्न के नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तराना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
'सज्जाद-ज़हीर' के नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
निसार मैं तेरी गलियों के
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मेरे मिलने वाले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मौज़ू-ए-सुख़न
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मंज़र
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मेजर-इसहाक़ की याद में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मदह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ुशा ज़मानत-ए-ग़म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़लस्तीनी शोहदा जो परदेस में काम आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दो इश्क़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़