Sharab Poetry (page 52)
शोले भड़काओ देखते क्या हो
अख़्तर अंसारी
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
अख़्तर अंसारी
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में
अख़्तर अंसारी
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
अख़्तर अंसारी
किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ
अख़्तर अंसारी
ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं
अख़्तर अंसारी
पहले हम इश्क़ किया करते थे
अख़्तर अमान
फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए
अख़लाक़ बन्दवी
अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है
अख़लाक़ बन्दवी
सुरूर
अख़लाक़ अहमद आहन
हम आज बज़्म-ए-रक़ीबाँ से सुर्ख़-रू आए
अख़लाक़ अहमद आहन
ख़ुद नज़ारों पे नज़ारों को हँसी आती है
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
जुनून-ए-इश्क़ का जो कुछ हुआ अंजाम क्या कहिए
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ख़्वाब आराम नहीं ख़्वाब परेशानी है
अकबर मासूम
देखने को कोई तय्यार नहीं है भाई
अकबर हमीदी
शैख़ की दावत में मय का काम क्या
अकबर इलाहाबादी
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
अकबर इलाहाबादी
जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
अकबर इलाहाबादी
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
अकबर इलाहाबादी
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
अकबर इलाहाबादी
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
अकबर इलाहाबादी
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
अकबर इलाहाबादी
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
अकबर इलाहाबादी
आह जो दिल से निकाली जाएगी
अकबर इलाहाबादी
सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी
अकबर अली खान अर्शी जादह
और तो ख़ैर क्या रह गया
अजमल सिराज
शहर शहर ढूँड आए दर-ब-दर पुकार आए
अजमल अजमली
मय-ख़ाने पर काले बादल जब घिर घिर कर आते हैं
आजिज़ मातवी
क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक
आजिज़ मातवी
ज़माने हो गए तेरे करम की आस लगी
अजीत सिंह हसरत