तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
एक कम-सिन हसीन लड़की का
चंद लम्हों को तेरे आने से
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से