यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम