यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इक ज़रा रसमसा के सोते में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से