चंद लम्हों को तेरे आने से
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
तितली कोई बे-तरह भटक कर
रात जब भीग के लहराती है
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल