कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
एक कम-सिन हसीन लड़की का
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
इक ज़रा रसमसा के सोते में
चंद लम्हों को तेरे आने से
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
अपने आईना-ए-तमन्ना में