आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा