तितली कोई बे-तरह भटक कर
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इक ज़रा रसमसा के सोते में
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अब्र में छुप गया है आधा चाँद