तितली कोई बे-तरह भटक कर
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अपने आईना-ए-तमन्ना में
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम