कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
रात जब भीग के लहराती है
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
चंद लम्हों को तेरे आने से
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं