कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
सर में तकमील का था इक सौदा