उस के और अपने दरमियान में अब
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
शर्म दहशत झिझक परेशानी
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
सर में तकमील का था इक सौदा
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
चाँद की पिघली हुई चाँदी में