जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
पास रह कर जुदाई की तुझ से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
शर्म दहशत झिझक परेशानी
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें