हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं