कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी